नक्सलवाद का इतिहास बहुत प्राचीन है। नक्सलवादियों के अनुसार उनकी अवधारणा इस बात पर आधारित है कि देश के विभिन्न भागों में बढ़्ती गरीबी, असमानता, अन्याय, विपन्नता के लिए सीधे तौर पर देश की सरकारें उत्तरदायी हैं। उनका यह भी मानना है कि सरकारें देश के गरीबों की स्थिति को सुधारने के लिए कुछ नहीं कर रही। देश में अमीर जहां और अमीर बनते जा रहे हैं, वहीं गरीब और गरीब हो रहे हैं। यह सब सरकारों की विफ़लता है और जब वे (नक्सलवादी) इस स्थिति को सुधारने के लिए अपनी ओर से कुछ कदम उठा रहे हैं तो अमीरों का समर्थन करने वाली यह सरकार उनका (नक्सलवादियों) का दमन करने पर उतर आती है, जिसका प्रतिकार किया जाना अत्यंत आवश्यक है।
इस कड़ी में पिछले कई सालों से पुलिस बल, अर्धसैनिक बलों के जवानों और नक्सलवादियों के बीच खूनी संघर्ष हो रहा है, जिसमें दोनों ओर से हर रोज़ कोई-न-कोई मारा जाता है।
अभी तक जो लोग नक्सलवादियों में मानवीय चेहरा ढूंढ रहे थे, शायद ६ अप्रैल को उनके घिनौने कार्य को देख/सुनकर अपनी इस सोच पर पछता रहे होंगे। उन्होंने सी.आर.पी.एफ़ के ७६ जवानों की जिस तरह से हत्या की, उसे देखकर नक्सलवाद के अच्छे से अच्छे समर्थक भी अंदर तक हिल गए होंगे। क्या अपराध था इन निर्दोष जवानों का, जिन्हें इस तरह कायरतापूर्ण तरीके से मौत के घाट उतार दिया गया।
आज भारत का बच्चा-बच्चा कह रहा है कि नक्सलवादी आतंकवादियों से भी बड़े अपराधी हैं।